Monday, March 10, 2008

तुम...


जीवन.... एक स्वप्न.... !
और तुम "मैं" का ही अंश..."मैं" की कल्पना....
जन्म और मृत्यु के बीच फैले इन्द्रधनुष के सात रंगो में से एक...
जिस एक के बगैर.. "मैं" के इन्द्रधनुष की कल्पना भी... भयावह..
है.... तो भी नहीं है.. नहीं है तो "क्यों" नहीं... ?
जैसे बहती गंगा अचानक.. मरुस्थल का रेत हो जाए....
जैसे.. भरी दोपहर... अचानक अमावस की स्याह रात हो जाए...
वैसे ही सब.. बदल जाता है.. जब...
बदलने लगते हैं.. मौन भाषाओं के अर्थ.............


मैं.......